गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
हुआ काम- धंधा सब चौपट, उसका मुखड़ा गम से पीला
भरी जवानी माँझा ढीला, नहीं रहा वह छैल- छबीला।
सूनी जिसकी हुई रसोई, भूला आज चैन से सोना
बीबी- बच्चे भूखे तड़पें, देख उन्हें आता है रोना
सीखा है बहती गंगा में, कितनों ने हाथों को धोना
नैतिकता की लाज लुट रही, बेबस अब उत्पीड़ित होना
घर का सब सामान बिक गया, कंगाली में आटा गीला
भरी जवानी माँझा ढीला, नहीं रहा वह छैल- छबीला।
एक तरफ धन- दौलत बरसे, और उधर इतनी लाचारी
रोटी के टुकड़ों की खातिर, हमने देखी मारामारी
कथनी- करनी में जब अन्तर,व्यर्थ योजनाएँ सरकारी
हाय माफिया के चंगुल में,फँसकर मानवता भी हारी
सूख गया है जिसका तन -मन, लगता जीवन हुआ कँटीला
भरी जवानी माँझा ढीला, नहीं रहा वह छैल- छबीला।
सत्ता से जो जुड़े हुए हैं ,नहीं रहम वे कभी दिखाते
तिकड़म के ताऊ जो ठहरे, हर अवसर का लाभ उठाते
अरहर की टट्टी में ताला, गुजराती वे आज लगाते
ऊँट भला किस करवट बैठे,इसको अब हम समझ न पाते
छत भी नहीं बची है जिसपर, सिर पर आसमान है नीला
भरी जवानी माँझा ढीला, नहीं रहा वह छैल- छबीला।
पापड़ जिनको पड़े बेलने, वे अब किसका करें भरोसा
खाते हैं कुछ लोग यहाँ पर, इडली डोसा और समोसा
भूखा- प्यासा निकल रहा जो उसने अपना पेट मसोसा
हाय बेबसी में क्या करता, उसने बस किस्मत को कोसा
आज सर्वहारा के हित में, अब विधान कुछ बने लचीला
भरी जवानी माँझा ढीला, नहीं रहा वह छैल -छबीला।
रचनाकार-उपमेंद्र सक्सेना एड०
'कुमुद -निवास'
बरेली (उ० प्र०)
मो० नं०- 98379 44187
(दैनिक 'दिव्य प्रकाश', बरेली में संशोधित रूप में प्रकाशित रचना)
shweta soni
08-Aug-2022 07:18 AM
Bahut achhi rachana 👌
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Renu
07-Aug-2022 06:12 PM
👍👍 बहुत ही सुन्दर
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
07-Aug-2022 04:24 PM
बहुत बहुत खूबसूरत और संदेश देती रचना
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